Saturday 14 December 2013

नयी मंज़िले

कभी आता है कुछ याद
कभी कुछ भूल जाते है
वक़्त के पहलु मे अक्सर
जज़्बात कही खो जाते है

ये किसके लिए रोते है हम
और किसके लिए जिए जाते है
यहाँ कौन है अपना
जो हम रिश्ते बना लेते है

काँधे पे सर रख
दिल तो बहल जाता है
पर रोने का मन करे
तो हालात बदल जाता है

हाथ मे हाथ हो तो
ज़माने को खटकता है
मोहब्ब्त नही दीखती
तेरा हुस्न आँखों मे चढ़ता है

क्या करेगी ये दुनिया मेरा
फिर भी इन्साफ कि बाते होती है
जब तन्हा था तो सब अपने थे
जो तुम मेरे हुए सब पराये है

रास्ते नही बदले हों पर
मंज़िल बदल चुकी है
कल ना चूमूंगा होंठ तेरे
झूमेगी पर बाहों में सफलता मेरे




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