Tuesday 27 August 2013

जन्मों का संगम

वो बाबुल की गलियाँ
वो  माटी का घरोंदा
छोड़ चल अब सजनी
की आयी मिलन की बेला

देख तेरा गुड्डा अकेला खड़ा
गुडिया से दुर जा अड़ा
पलट-पलट ना याद कर
वो यादों का खिलौना

कसक दिल मे लिए
होंठों को भी सिये
जाएगी कितनी दुर
जिंदगी के रास्ते है टेढ़े

जब नए घर मे पाँव धरेगी
अकेले ही दुनिया से लड़ेगी
 नाज़ुक हाथों से है अभी तो
अपनी गृहस्ती तुझे बनाना

और कितनी देर अश्क बहाएगी
कजली को गालों पे लगाएगी
नवीन नयनों से ये दुनिया देख
अभी बहुत कुछ है रखा हुआ

चल सजनी ये गाँव हुआ पुराना
नया तुझको दीखऊं अब ठिकाना
इस क़दर भी ना शरमा हमसे
जनम-जनम का साथ है अब से






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