Sunday 1 September 2013

तरन्नुम के गीत

प्रिये आज दिल बड़ा अकेला है
हर तरफ़ अँधेरा ही अँधेरा है
सुनी है शहर की गलियाँ
मौसम भी उमस भरा है

मधुर चाँदनी बिखरी पड़ी है
मानो आसमां पे दिया जलाता है
पर दिल इतना वीरां क्यों है
मानो बादलों को तरसता है

भिगने का अब भी वही बचपना है
पर आँखों से बरसात बरसता है
धुंधली पलकों को उठाता है
और हँस कर आहें भरता है

सुनी मेरी दिल की ढ्होरी है
और मर्माहत मेरा ये मन है
बस्ती ये चार दिन की है
फिर कहाँ तुम और कहाँ हम है

हर चेहरे पे मुस्कान बिखरी है
हर कोई खुद मे मगन जीता है
पर ये दिल बग़ावत करता है
तुम बिन ये न हँसता है

बिन फुल भी कभी भ्रमर गाता है
ऐसा तो किसी बाग़ में ना होता है
ये मेरा मन नहीं तुम्हारे यादों का खजाना है
तभी तो तुम्हारे तरन्नुम मे आज भी गाता है


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