Sunday 15 September 2013

कुछ तेरे लिये

पायल पैरों में तेरी छनकती है
मानो दिल पे बिजली सी गिरती है
मुस्कुरा के जब तुम जाते हो
सारी क़ायनात को रुला जाते हो

समझ नहीं आता इंक़लाब करुँ या सत्याग्रह
या लगा दुँ उम्र भर नज़रों का पहरा
जुल्फों की बदलियाँ चेहरे से सरकाओ
दीदार-ऐ-हुस्न से अब न तरसाओ

इन होंठों से बहती है जो  धारा
सारे सावन से भी लगता है प्यारा
जब दांतों से काटती हो उन्हें
जी में आता है रोक लुँ तुम्हें

मगरूर होती पलकों को ज़रा उठाओ
चाहने वाले की पलकों से तो मिलाओ
फिर भले झुका लेना नजाकत से
और लिपट जाना मोहब्बत से

क्या कुछ सब पीछे छूट गया
याद का सहारा भी टूट गया
जो कभी माँगी थी दुआ हर दर में
ख़ुदा ने सब भर दिया तेरे मन में

खुद में ही सिमटती हो जब
बड़ी प्यारी लगती हो तब
रंगीन जो आँचल है तेरा
हर खुशी छिपाए है मेरा

फिर ये रात आये न आए 
सितारे सेज बिछाए न बिछाए
आँखों से तो जाम खूब पिए
अब सिमट जाओ बाँहों में प्यार लिए





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