प्रिये आज दिल बड़ा अकेला है
हर तरफ़ अँधेरा ही अँधेरा है
सुनी है शहर की गलियाँ
मौसम भी उमस भरा है
मधुर चाँदनी बिखरी पड़ी है
मानो आसमां पे दिया जलाता है
पर दिल इतना वीरां क्यों है
मानो बादलों को तरसता है
भिगने का अब भी वही बचपना है
पर आँखों से बरसात बरसता है
धुंधली पलकों को उठाता है
और हँस कर आहें भरता है
सुनी मेरी दिल की ढ्होरी है
और मर्माहत मेरा ये मन है
बस्ती ये चार दिन की है
फिर कहाँ तुम और कहाँ हम है
हर चेहरे पे मुस्कान बिखरी है
हर कोई खुद मे मगन जीता है
पर ये दिल बग़ावत करता है
तुम बिन ये न हँसता है
बिन फुल भी कभी भ्रमर गाता है
ऐसा तो किसी बाग़ में ना होता है
ये मेरा मन नहीं तुम्हारे यादों का खजाना है
तभी तो तुम्हारे तरन्नुम मे आज भी गाता है
हर तरफ़ अँधेरा ही अँधेरा है
सुनी है शहर की गलियाँ
मौसम भी उमस भरा है
मधुर चाँदनी बिखरी पड़ी है
मानो आसमां पे दिया जलाता है
पर दिल इतना वीरां क्यों है
मानो बादलों को तरसता है
भिगने का अब भी वही बचपना है
पर आँखों से बरसात बरसता है
धुंधली पलकों को उठाता है
और हँस कर आहें भरता है
सुनी मेरी दिल की ढ्होरी है
और मर्माहत मेरा ये मन है
बस्ती ये चार दिन की है
फिर कहाँ तुम और कहाँ हम है
हर चेहरे पे मुस्कान बिखरी है
हर कोई खुद मे मगन जीता है
पर ये दिल बग़ावत करता है
तुम बिन ये न हँसता है
बिन फुल भी कभी भ्रमर गाता है
ऐसा तो किसी बाग़ में ना होता है
ये मेरा मन नहीं तुम्हारे यादों का खजाना है
तभी तो तुम्हारे तरन्नुम मे आज भी गाता है
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