Sunday, 8 September 2013

हाल ना पूछ दीवानों का

हाल ना पूछ दीवानों का
ना शमां जला परवानों का
बिखरी हैं मोतियाँ मोहब्बत की
है हाल बुरा राजकुमारों का

हाल ना पूछ हवाओं का
ना बही पुरवैया मौसम का
बिखरी है मंझदार में नाव 
है हाल बुरा किनारों का 

हाल ना पूछ मतवालों का
ना छलका मदिरा प्यालों का
बिखरी है झंकार पायलिया की
है हाल बुरा मयखाने का

हाल ना पूछ नजारों का
ना फूल खिला बहारों का
बिखरी है कलियाँ चमन की
है हाल बुरा फिजाओं का

हाल ना पूछ अपनों का
ना लाज रखा कसमों का
बिखरी है यादें फिजाओं की
है हाल बुरा आशिकों का

हाल ना पूछ कवि का
ना प्यार मिला महफ़िल का
बिखरी है लारियां लफ़्ज़ों की
है हाल बुरा कवितओं का











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